Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 4

              "बंधन जन्मों का" भाग-4

पिछला भाग:--
घरे खाना माना तो
बनने नैंया... खाना तो सबयीं को इतयीं हैयी...
गाना बजाना और खाना... आशीष देत जइयो
मौड़ी को.....
अब आगे:--
आज तो घर में बहुत चहल-पहल दिख रही थी...
मंडप जो है... मेहमान भी सब आ चुके हैं घर भी रंग-बिरंगी बिजली की रोशनियों से जगमगा रहा है,
मंडप की सजावट देखते ही बनती है,ऊपर से आम
की हरी-हरी पत्तियां प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ा रहीं हैं, पंडित जी मंडप की पूजा करवा रहे हैं और सभी
अपने अपने में बतियाने में लगे हैं... एक तरफ गाना
बजाना चल रहा है...मंडप में ही बिटिया को हल्दी
लगायी जायेगी....कल बारात आने वाली है सो वो तैयारी भी चल रही है.... भतीजी सब को एक एक कर मैंहदी लगाने में व्यस्त है.... कल का काम सब हलवाई को सौंप दिया गया है......

आज तो सुबह-सुबह ही नेंगचार शुरु हो गये हैं...
ननिहाल से चीकट में कपड़े बगेरह आते हैं पूरे
परिवार के लिए.... फिर बिटिया को तेल, हल्दी,
उबटन सब होता है.... जहाँ देखो अफरा तफरी 
सी मची है... सब कुछ न कुछ काम में लगे हैं...
आज तो पूरा गाँव ही जमा है....बारात द्वारे आ
गयी...बारात का स्वागत, द्वाराचार सब कुछ बड़े
अच्छे से सम्पन्न हुआ... खाना पीना हुआ....

फैरे का मुहूर्त आ गया, सप्तपदी भी कहते हैं इसे,
फैरे पड़ने लगे,सात वचन कहे गये, अल्हण बालिका
कहाँ इसका!! उसको भान था उसके हिसाब से तो
गुड्डा गड़िया का ब्याह हो रहा था जैसे....
अच्छे-अच्छे नये नये कपड़े जेवर पहनने मिलेंगे....
शादी ब्याह बिदाई,सब हो गया एक मौहल्ले से
दूसरे मौहल्ले में ब्याह कर आ गयी.....

यहाँ ससुराल में आकर!! यहाँ के नेगचार दस्तूर शुरू हो गये-द्वार छिकाई, मुंँह दिखाई, ओर भी
खेल खेल में कुछ छिपे हुये संदेश.....
फिर शुरु हुआ पारम्परिक दादरों का दौर....
नयी बहु आती है सो दादरे गाए जाते हैं, बहु से 
भी कुछ न कुछ गवाते हैं....
झांझ, मंजीरे, ढोलक की थाप पर शुरु हुआ.....
दादरा गीत:--
      ये रतियां ,सनन सनन होयं मेरी गुंइयां,
      माथे की बैंदी, सैंयां जी लाए,
      ये झाले, झलर मलर होंय मेरी गुंइयां,
      ये रतियां.....
      गले का हरवा, सैंयां जी लाए,
      ये चुड़ियां, खनन खनन होंय मेरी गुंइयां,
      ये रतियां.....
      पैरों की पायल, सैंया जी लाए,
      ये बिछिया, रुनझुन होंय मेरी गुंइयां,
      ये रतियां.....
      गोटे की चुनरी, सैंया जी लाए,
      ये चुनरी, लहर फहर होय मेरी गुंइयां,
      ये रतियां.....
      लड्डू और पेड़ा, सैंया जी लाए,
      ये दौना, चरर मरर होंय मेरी गुंइयां,
      ये रतियां.....।

चलो री बहुत टेम हो गओ, सकारे जल्दी सोयी उठने पड़ है...बहुरिया सोयी आराम कर है.....
दो दिन बाद बिटिया की बिदा करा ले आए पंडित
जी....रीति रिवाज तो चलते ही रहेंगे रिश्ता जो
जुड़ गया है.... साल दो साल बाद गौना हो जायेगा
मौड़ी का.... चलो बिटिया की शादी हो गयी सो
अपन गंगा नहाए.....

खेलते खाते कब दो वर्ष का समय निकल गया,
पता ही नहीं चला... बिटिया के गौना की तैयारियां चल रहीं थीं... परौं के दिना गौना होने है......
सिया को दो तीन दिन से बुखार आ रहा था.....
बुखार उतर जाता फिर चढ़ जाता... सो गौना नहीं करा... उस रात पंडित जी की अचानक तबियत बिगड़ गयी... बहुत तेज बुखार के साथ शरीर पर
लाल लाल दाने उभर आए... रात का समय कहाँ जायें क्या करें!! बच्चों को कुछ समझ नहीं आ रहा,
वैद्य जी ने जो माँ को दवाई दी थी... वही दवाई बापू
को खिला दी बच्चों ने....पर कोई फायदा न हुआ....
बुखार उतरने का नाम ही न ले रहा था.....
क्रमशः--

    कहानीकार- रजनी कटारे
           जबलपुर ( म.प्र.)

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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Feb-2022 04:16 PM

बहुत खूबसूरत

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